गुरुवार, 5 जुलाई 2012

"आकाश मुद्रा" 
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पद्मासन या सुखासन मैं बैठे 
श्वासों की गति को सामान्य होने दे ...अब 
अपनी मध्यमा उंगली के सिरे को,,
अंघुठे के सिरे से स्पर्श करे,,,
हल्का सा दबाये,,
बाकि तीन उंगलियों को सीधा रखे
आँख बंद कर के अपनी श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करे
समय .५ मिनिट से लेकर १५ मिनिट तक
धीरे से मुद्रा छोड़े
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उपयोग :
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यह मुद्रा कानो,हड्डियों तथा ह्रदय रोगों में उपयोगी हे,,
यह इतनी कारगर हे की कानो से खून बहाना भी रोक सकती हे,,
दातो का दर्द या मुह में चले होने की
स्थिति में भी यह मुद्रा कारगर सिद्ध होती हे,,
यह सभी जानते हे की,
ध्वनी व प्रकाश की तरंगे आकाश माद्यम में ही संचरण करती हे,,
भोतिक जगत में जो हमे अपने चारो और
खाली स्थान लगता हे यहाँ आकाश से वही अर्थ हे,,,
हमारे अन्दर खाली स्थान चाहे वह
शारीरिक हो या मानसिक वही हमारे शारीर में आकाश तत्व हे ,,,,
यह मुद्रा इस तत्व को
शुद्ध करती हे,,,,तथा अशुद्धियो को हटाकर खाली स्थान बनती हे,,,क्यूंकि जब तक हम अन्तह
को अनुपयुक्त से खाली नहीं करते उपयोगी चीजो के लिए जगह कैसे बनेगी,,थकान होने पर मुद्रा
उर्जा व उतेजना उत्तपन कर सकती हे,,,इस मुद्रा को खाते या चलते समय न करे,,
इसे आवश्यकता से अधिक भी नहीं किया जाना चाहिए,
आकाश मुद्रा हमारे मन में "विवेक बुद्धि " की जाग्रति करती हैं ...अगर कोई स्वार्थी स्वभाव के इन्सान को
" आकाश मुद्रा " का अभ्यास करवाया जाय तो इसके बड़े अच्छे लक्षण ; देखने को मिलते हैं , इतनाही नहीं यह मुद्रा गले के दर्द के लिए भी और ह्रदय रोंगों में भी कगार साबित हुवी हैं
इसीलिए इसे " ह्रदय मुद्रा भी कहते हैं

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